ravi vijayvargia

रवि विजयवर्गीय पीपलू टोंक
जिले में गली-गली में क्रिकेट का जोर व शोर
रन लेने के लिए पिच के बीच दौडते बल्लेबाज उन्हे आउट करने की कोशिश में गेंद का पीछा करते फील्डर, इसी बीच जोरदार अपील, नोकझोंक और गेंदबाज अब अगली गेंद फेंकने को तैयार। यह नजारा अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में तो देखने को मिलता है लेकिन यही दृश्य क्रिकेट के खुमार में डूबे बच्चों द्वारा खेली जा रही क्रिकेट के है जिसके नजारे इन दिनों पीपलू के सभी खेल मैदानों, तालाबों पर, स्कूलों मे तथा गली-मौहल्लों में दिखाई पड रहे हैं। हाल ही दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खत्म हुई सीरीज पर भारत का कजा तथा विश्वरिकॉर्डधारी सचिन तेदुंलकर के वनडे क्रिकेट में रिकॉर्ड दोहरे शतक लगाया है जिसका खुमार अभी भी क्रिकेट प्रेमियों के दिल में से नही उतरा है। हाल ही सम्पन्न हुई के सीरीज के बाद भी सचिन के दर्शक जो अपने-अपने दोस्तो व बराबर के बीच उसका जिक्र करना नही भुलते है तथा अभी तक खुमार फीका नही पडा है। परीक्षा का भूत सिर पर सवार है तो क्या क्रिकेट खेलना छोड दें। नही बस क्रिकेट, क्रिकेट और क्रिकेट ही इनकी आजकल दिनचर्या बन गई है।
परम्परागत खेल तो अब खेल प्रांगणों से बिल्कुल लुप्त से हो गये है। पिछले कुछ सालों से क्रिकेट ही सब खेलों पर हावी हो गया तथा क्रिकेट के लिए खूब पैसा भी लगाया जा रहा है। ऐसे में नई पीढी के अधिकांश बच्चे तो प्रचलित रहे खेलों के नाम तक नही जानते। स्कूली बोझ से मुक्त बच्चे क्रिकेट का भरपूर आनंद उठा रहे हैं। इस खेल में उन्हे न ज्यादा जगह की और न ही ज्यादा खिलाडियों की जरूरत, जितनी जगह मिल जाए और जितने खिलाडी हों, सब चलता है इस क्रिकेट में। क्रिकेट के मैच के दिन क्रिकेट प्रेमी न तो भुख प्यास की और न ही बडों की डांट-डपट की परवाह रखते है बस हम तो क्रिकेट के दीवाने है।
क्रिकेट खेल खेलते वक्त क्रिकेट दीवानेपन में न धूप-छांव की परवाह है और न ही भुख प्यास की, और घरवालों की डांट-डपट की भी इन दीवानों को कोई फिक्र है। क्रिकेट खेलने जाना है तो जाना ही है चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए यह तो क्रिकेट के इन दीवानों से साफ जाहिर होता हँै। परीक्षा का भूत सिर पर सवार है तो क्या हुआ क्रिकेट खेलना छोड दें। नही बस क्रिकेट, क्रिकेट और क्रिकेट ही इनकी आजकल दिनचर्या बन गई है।
क्रिकेट के शौकिन ये बच्चे भोर होते ही अपने साथियों के साथ बल्ले और गेंद लेकर घरों से निकल पडते हैं। फिर क्रिकेट खेलने के लिए एक किलोमीटर पैदल जाना पडे या खुला मैदान हो तथा संकरी गली या फिर मकान की छत, बरामदा ही हो यही क्रिकेट प्रेमियों को अपने लिए उपयुक्त मेदान मिल जाता है। थोडी दूरी पर बडे पत्थर को खडा कर या ईंटों को जमाकर तथा बंबूल की लकडियो को जमाकर इनके स्टम्स बन जाते है और मैच खेलने के लिए तैयार हो जाती है पिच। जिस पर बच्चे व किशोर खिलाडी बिना नहाये, बिना कुछ खाये पिये घंटों तक क्रिकेट खेलते रहते है। ज्यादा खिलाडी हो तो बराबर दो हिस्से में उन्हें बांटकर दो टीमें बन जाती हैं नही तो व्यक्तिगत तोर पर ही ये खेल लेते हैं। कभी ये ही टीमें भारत-पाकिस्तान की तो कभी भारत दक्षिण अफ्रीका की हो जाती है तथा जब जिस टीम के बीच अन्तर्राष्ट्र्रीय क्रिकेट खेला जाता है तो आज भारत जीतेगा या अफ्रीका इसका वह अपनी-अपनी टीमों को देकर अपना डिसीजन तो ले लते है। खिलाडी जयादा हो तो इनका मैच ही किसी प्रतियोगिता से कम नही होता, तथा फिर अम्पायर भी बनाया जाता है और आंखो देखा हाल सुनाने वाला कमेन्ट्रेटर भी। आउट होने न होने को लेकर मैच के दोरान कुछ तीखी नोकझोंक के दौर भी आते हैं तो कभी इन्हीं नोकझोंकों में मैच भी अधुरे ही समाप्त हो जाते है। लेकिन अगले दिन सब कुछ भुलकर ये खिलाडी क्रिकेट में मशगूल दिखाई पडते हैं। पीपलू तथा आस पास के सभी छोटे गांवों में भी यह दृश्य आजकल देखे जा सकते हैं। खुले मैदान जहां भी है वे हमेशा क्रिकेट मैच में व्यस्त रहते हैं।
बच्चों के बीच में अब कबड्डी, सतोलिया, लंगडी टांग, छुपा-छिपी, विष-अमृत, रूमाल झपट्टा, गुलाब की साडी, गिली डण्डा तथा अंट्टिया जैसे खेलों को कोई महत्व नहीं रखते है। बेडमिंटन फटबाल भी कभी स्कूली प्रतियोगिता में ही देखने को मिलता है। इन सभी खेलो पर क्रिकेट ही हावी है। टेलीविजन के मोहजाल में जकडे बच्चे अब तो घर से बहुत ही कम बाहर निकलते हैं यदि बाहर भी जाते है तो परम्परागत खेल उन्हे रास नही आते है। घरो में टीवी और वीडियों गेम ही मनोरजंन बन गया है तथा बाहर निकलते है तो बस उनको क्रिकेट ही भाता है। वर्तमान में नई पीढी के अंधिकांश बच्चे तो परम्परागत खेलों कों खेलना तो दूर उनके नाम और खेलने के तरीके तक को नही जानते।
रवि विजयवर्गीय पीपलू, टोंक

इन्सान ने कर दिया खरगोश को काला...?
अविकानगर के वेज्ञानिको ने किया चमत्कार
टोंक, 1 फरवरी । कहते है, कुदरत के आगे किसी कि नही चलती पर ऊ न अनुसघांन केन्द्र अविकानगर टोंक के वेज्ञानिको ने कुदरत के करिश्मो से हटकर अपने अथक प्रयासो से खरगोश को काला कर दिखाया और आज सिर्फ अविकानगर सस्ंथान मे पूरी तरह के काले खरगोश पेदा हो रहे हे । कई तरह की भेडो के आयात ओर नये नये अनुसंधानो के लिये प्रसिद्व इस सस्ंथान मे भेडो के साथ ही खरगोशो की भी चार तरह कि विदेशी नस्लो यूके की चिलचिला , रसिया की व्हाईटजेन्ट , ग्रेजेन्ट व न्यजीलेण्ड व्हाईट पर अनुसघांन ओर खरगोश पालन को बडावा देने के प्रयासो के तहत कार्य पिछले 10 वर्षो से अधिक समय से जारी है , और जब इस सस्ंथान के वेज्ञानिको ने देखा कि खरगोश कई रंगो के पाये जाते पर पूर्ण रूप से काला खरगोश किसी भी प्रजाति मे कही भी नही पाया जाता तो वेज्ञानिको ने लगातार इस दिशा मे प्रयोग जारी रखे लेकिन शुरूआती दौर मे खरगोश को पुरा काला पैदा करने के प्रयासो मे सस्ंथान को आंशिक सफलताये ही हाथ लगी लेकिन उन्होने हार नही मानी, और उनका खरगोश को काला करने का सपना सच हो गया यह भारत देश मे पहला मामला था कि खरगोश काले रगं के पेदा होने लगे,व इन काले खरगोशो को नाम दिया गया ब्लेक -बा्रउन आज इस सस्ंथा मे पिछले चार वर्षो से खरगोश पुरी तरह काले पेदा हो रहे है । वरिष्ठ वेज्ञानिक राजीव गुलयानी कहते है कि पिछले आठ वर्ष से जारी इन प्रयासो मे शुरू मे कुछ सफलताऐ मिली थी , लेकिन पिछले चार वर्षो से यहा पर पूरी तरह काले रंग के खरगोश पेदा किये जा रहे है।व काले रंग के खरगोश की खाल की हाथो के दस्तानो, टोपियो लेडिज पर्स के लिये सर्वाधिक मांग रहती है , देश मे प्रति वर्ष 5० लाख खरगोशो की खालो की माग रहती है । ऐसे मे खरगोश पालन किसानो के लिए अच्छा विकल्प है । क्योकि यह एक विश्व प्रसिद्व पशु है संस्था के वेज्ञानिको द्वारा सफे द से काले रंग का खरगोश पेदा करना कोई पहला मामला नही है यहा के वेज्ञानिको ने एक भेड से 23 भ्रुण व मालपुरा नस्ल की भेड से एक साथ चार मेमने पैदा करने जैसे कई सफल अनुसंन्धान इस दिशा मे किये है । संस्थान के निदेशक डा० शैख अब्दुल करीम बताते है कि हमारे सारे अनुसंन्धान इस दिशा मे होते है कि पशु पालको को कम कीमत व कम समय मे अधिक फायदा मिले आज के समय मे खरगोश पालन को भी एक अच्छे व्यवसाय के रूप मे अपनाया जा सकता है । जहा तक खरगोश को काले रंग मे पैदा करने का सवाल है । हम निरंन्तर चार वर्षो से हमारे यहा पूरी तरह काले रंग के खरगोश पैदा करने मे सफल रहे है ।

रामबाबू विजयवर्गीय पीपलू, टोंक
आज भी जन-जन की आस्था का केन्द्र
गोकर्णेश्वर महादेव के रावण ने अपनी मां के साथ की थी यहां घोर तपस्या
कभी रावण द्वारा अपनी मां के साथ घोर तपस्या करने वाले अरावली पर्वत माला की प्राकृतिक छटाओं व बनास नदी के मुहाने टोंक जिले के बीसलपुर बांध पर स्थित गोकर्णेश्वर महादेव के आंगन में आज हर समय श्रद्धालु व सैलानियों की भीड़ रही और गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर आज भी जन-जन की आस्था का केन्द्र हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के अमिट खजाने से भरपूर इस आध्यात्मिक केन्द्र पर प्रदेश की बहुउद्देश्यीय परियोजना बीसलपुर बांध के बनने से इसके महत्व में ओरचार चांद लग जाने गए हैं, जिससे यह स्थान धार्मिक सद्भाव के साथ-साथ पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षक का केन्द्र बन चुका है।
किदवन्तियों के अनुसार गोकर्णेश्वर मंदिर का पौराणिक इतिहास है कि रावण द्वारा कैलाश पर्वत पर भगवान शिवशंकर की कठोर तपस्या करने से भगवान शिव ने अपने ह्रदय से आत्मलिंग निकालकर रावण को एक शर्त का पालन करने पर दिया। जिसके अनुसार यह शिव लिंग एक बार जहां भी अपने सिर से उतार कर रख देगा वहां से यह शिवलिंग दुबारा नहीं उठेगा। मार्ग में चलते समय रावण को लघुशंका होने पर वर्तमान बीसलपुर की पहाडिय़ों के मध्य उसने यह शिव लिंग उतार कर यहां रख दिया। शर्त के अनुसार शिव लिंग वहां से किंचत भर भी नहीं हिला तो बम्ब भौले की मंशा को रावण ने भांप लिया। और विधिवत पूजा अर्चना कर शिवलिंग को वहीं स्थापित करवा दिया। फिर क्या था रावण ने अपनी माता केकशी के साथ हजारो वर्ष तक यही भगवान शिव क ी तपस्या की। इस कारण आज गोकर्णेश्वर महादेव जन जन की आस्था का मुख्य केन्द्र बन चुका है। यह स्थल गोकर्णेश्वर महादेव के नाम से शास्त्रों में ही नहीं बल्कि शिवभक्तों के दिलों में भी विख्यात है। स्थापित शिव लिंग के दाहिनी ओर गाय के कान का निशान बना हुआ है इस कारण यह गोकर्णेश्वर कहा जाता है। यह स्थान सामान्य पहाड़ी से 40 फीट अंदर है और 40 ऊंचा है। इस पहाड़ी का स्वरूप गुफां में शिव लिंग के उपर शैषनाग की तरह बना हुआ है। हजारो वर्ष पूराने इस शिव मंदिर का जिर्णोद्धार 1725 ईस्वी में जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने माघ कृष्ण चर्तुदशी को मंदिर, दरवाजा, सीढिय़ां व नो चौक आदि का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में पौराणिक चार द्वार है, जिनको रामद्वार, तक्षक द्वार, श्यामबाराह द्वार, बीजासण द्वार के नाम से जाना जाता है। गोक र्णेश्वर मंदिर के चहुमुखी विकास के लिए 10 अगस्त 1982 को मंदिर निर्माण समिति का गठन किया गया है। जिसकी हर पखवाड़े को बैठक होती है। जो मंदिर निर्माण संबंधी एवं श्रद्धालुओं व पर्यटको के लिए हर प्रकार की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रयासरत है। समिति के सहयोग से धर्मशालाएं, दुकाने, कमरो आदि का निर्माण किया गया है। जहां आने वाले हर यात्री इन सुविधाओ का लाभ ले रहे है।
पौराणिक जानकारी के अनुसार देश भर में भगवान शिव के 108 उपलिंगो में से एक स्थान यह भी है। जो गोकर्णेश्वर (महाबलेश्वर) आत्म शिव लिंग के नाम से विख्यात है। त्रिवेणी का संगम होने से इस स्थान की धार्मिक महत्ता अलग ही है। यहां प्रतिवर्ष दो मेले वैशाख की पुर्णिमा व कार्तिक की पुर्णिमा को आयोजित किए जाते है। तीन नदियों के संगम पर प्रदेश की महत्वाकांक्षी सिंचाई व पेयजल परियोजना बीसलपुर बांध का निर्माण हो चुका है। यहां प्राकृतिक सौन्दर्य से पर्यटकों की आवा जाही बढ़ी है। जिससे सावन व भादवा माह में पूरे राज्य के पर्यटको का जमावड़ा लगा रहता है।
रामबाबू विजयवर्गीय पीपलू, टोंक
चारभुजाजी मन्दिर के पास राजस्थान पत्रिका कार्यालय पीपलू,टोंक (राज.)

रवि विजयवर्गीय 'पीपलूÓ
टोंक (राजस्थान)
मोबाइल नं. - 9414348397

बालिकाएं आगे बढ़कर उन्नति के शिखर को छुएंगी: राज्यपाल जोशी
निवाई की कीर्ति करनाणी श्रीमती रत्नामा पदक से सम्मानित
२३७८ दीक्षार्थियो को विभिन्न विषयों की उपाधियां भी दी
-वनस्थली विद्यापीठ के 74 वें वार्षिकोत्सव व दीक्षांत समारोह के अवसर पर मुख्यअतिथि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनवारी लाल जोशी ने कहा कि हमारी व्यथा रही है कि हमने वर्षो तक स्त्री शिक्षा को संबल नहीं बनाया था और आज जब ध्यान दिया तो महिलाएं हर क्षेत्र में उभर कर आ रही है। महिलाओं को आज पंचमुखी शिक्षा दिलकर देश के भविष्य को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वनस्थली विद्यापीठ का बड़ा सम्मानीय इतिहास रहा है। पिछले 74 वर्षो में विद्यापीठ ने स्व. हीरालाल शास्त्री की परिकल्पना की बहुत ही सम्मानजनक यात्रा की है। उन्होंने कहा कि वह वनस्थली पहली बार आज से 55 वर्ष पूर्व तब आए थे, जब बाबू राजेन्द्र प्रसाद यहां आए थे। जोशी ने कहा कि वह शिक्षण संस्थाओं पर बहुत ध्यान देते है। उत्तरप्रदेश में शिक्षण संस्थाएं बहुत है लेकिन वनस्थली में आकर जो कार्य देखा, उससे आत्म संतुष्टि हुई है। राज्यपाल जोशी ने कहा कि वनस्थली विद्यापीठ एक मात्र ऐसी संस्था है देश में, जहां सर्वांगीय विकास विद्यार्थियों में ढाला जाता है। अन्य शिक्षण संस्थाओं में ऐसा नहीं देखा जाता है। उन्होंने कहा कि यहां उन छात्राओं को शिक्षा दी जाती है जो हमारे भविष्य को संवारेगी। उन्होंने कहा कि नारी के व्यक्तित्व का विकास होगा तो पूरा परिवार ही नही, समाज तथा देश का भी विकास होगा। उन्होंने वनस्थली की विकास यात्रा को देख कर काफी खुशी व्यक्त की। राज्यपाल जोशी ने कहा कि उनकी धर्मपत्नि श्रीमती संतोषी जोशी कभी भी सार्वजनिक समारोहो में उनके साथ मंच पर नहीं बैठी। लेकिन यह प्रथम अवसर है कि आज उनकी धमपत्नि पहली बार समारोह में मंच पर बैठी है तो छात्राओं ने तालियां बजाकर उनका करतत ध्वनि से स्वागत किया। इस अवसर पर राज्यपाल जोशी ने उनके साथ आई एक प्रोफेसर डा.ज्योति जोशी द्वारा लड़कियों के संबंध में बनाई गई एक कविता सुनाई तो पाण्डाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गंूज उठा। प्रारंभ में विद्यापीठ के कुलपति डा.आदित्य शास्त्री ने विद्यापीठ की पिछले एक वर्ष की गतिविधियों पर विस्तार से जानकारी देते हुए अब तक की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। राज्यपाल जोशी ने उक्त प्रतिवेदन का विमोचन किया। वनस्थली विद्यापीठ के 74 वें वार्षिकोत्सव पर मुख्य अतिथि के रुप में विद्यापीठ की छात्राओं जब महामहिम को सूत की माला पहना एवं तिलक लगा गुड़ से मुंह मीठा करवाया तो वह इस पुराणिक स्वागत परम्परा की झजक पाकर गद गद हुए बिना नही रह पाएं। वीर बाला मैदाना में घुडसवारी प्रदर्शन में नन्ही बालिकाओं से राज्यपाल ने स्वयं जाकर पूछा कि क्या घुड़ सवारी करते डर नही लगता एवं तुम भी कभी गिरी नही। 8 वर्षीय एक बालिका ने जब उन्हे बताया कि उन्हे डर तो नही लगता लेकिन वह कभी कभार घुड सवारी करते हुए गिर चुकी हैं। वीर बाला मैदान में विद्यापीठ की छात्राकनिका राठौड़, जहां नगीना नामक घोडे पर तो मंजू, सुनयना, केटरिना ने घुड सवारी से हाईजम्प कर 8 विभिन्न्ज्ञ बाधाएं पार की एवं सुनयना व रामनन्दिनी ने 5 घोडों की अलग-अलग कमान सम्भाले संधे हाथों में घुडसवारी ने दांतो तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दिया। घुड दौड़ में रेखा चौधरी, मंजू, कनिका शर्मा एवं सुहानी ने बेहत्तर प्रदर्शन किया।
चिरमी की प्रस्तूतती पर शाबाश कहने से नही चुके राज्यपाल
-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातनाम रहेें विद्यापीठ के चिरमी नृत्य में चार-चार चरियें को सिर पर रखकर आग जलाकर 10 बालिकाओं के राजस्थानी नृत्य में जब बालिकाएं नंगे पांवों से तलवारों, गिलासों एवं थाली पर चढकर नृत्य किया तो महामहिम स्वयं तालियां बजाते हुए खडे हुए तथा शाबाश कहने से नही चुके। इस नृत्य की मार्ग दर्शिका डा. नीलम को धन्यवाद देते हुए राज्यपाल बी.एल. जोशी ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत कर रही कनिका शर्मा के बेहत्तर प्रदर्शन में तबले की थाप एवं घुंघरु की आवाज का तालमेल पर तालियां बजाई आडोटोरियम में ही वृन्द वादन व गायन में ठूमरी सुनकर गदगद हुए। उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल बनवरी लाल जोशी ने विद्यापीठ के आर्ट गैलेरी में डीन पुष्पा दुल्लर के नेतृत्व में छात्राओं द्वारा फैस्किों कार्य का अवलोकन किया। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने परेड़ मैदान में वनस्थली सेवा दल द्वारा प्रस्तुत परेड़ का निरीक्षण झण्डारोहण, परेड निरीक्षण एवं परेड़ सलामी भी ली। वनस्थली विद्यापीठ में आयोजित दीक्षातं समारोह में विज्ञान एवं प्रोद्योगिक विभाग भारत सरकार के सचिव डा. टी रामासामी ने कहा कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत हित साधना के लिए नही है, बल्कि समाज कल्याण में भी योगदान करती हैं। वनस्थली विद्यापीठ प्रो. डा. आदित्य शास्त्री ने कहा कि डा. टी. रामासामी के देश के मूर्धन्य वैज्ञानिक है। महिला विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी शिक्षा के विकास के लिए वे सदेव तत्पर रहते आये हैं। इसी का परिणाम है कि उन्होने बायो साइंस एण्ड बायो टेक्नोलोजी के विस्तार के लिए वनस्थली विद्यापीठ द्वारा भेजे गए क्यूरी का प्रोजेक्टर एक माह में ही स्वीकृत कर दिया। करीब 58 हजार वर्ग फिट क्षेत्र में बनने वाले स्कूल ऑफ लाईफ सांइस के लिए 5 करोड़ 25 लाख रुपए स्वीकृत हुए हैं। डा. टी. रामासामी ने आज ही अपने हाथो युक्त बनने वाले भवना का शिलान्यास किया। इस अवसर पर विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. दिवाकर शास्त्री ने विद्यापीठ द्वारा आयोजित विभिन्न परीक्षाओं में उत्र्तीण 2 हजार 37८ छात्राओं को उपाधि वितरित की। इसके अतिरिक्त विभिन्न परीक्षाओं में मेरिट में आने वाली 82 छात्राओं को स्वर्ण पदक प्रदाना किए। इस अवसर पर विद्यापीठ के अध्यक्ष दिवाकर शास्त्री ने उपाधि प्राप्त छात्राओं को दीक्षा दी।
दीक्षांत समारोह में ८२ छात्राएं स्वर्णपदक से सम्मानित
-वनस्थली विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाली कुल ८२ छात्राओं को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया, वही २३७८ दीक्षार्थियो को विभिन्न विषयों की उपाधियां भी दी गई। देश की सुविख्यात महिला विश्व विद्यालय वनस्थली विद्यापीठ के २६ वे दीक्षान्त समारोह में मुख्य अतिथि भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग के सचिव डा. टी रामासामी की मौजूदगी में विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. दिवाकर शास्त्री नेें निवाई की कीर्ति करनाणी को एमएससी जीवविज्ञान प्राणी शास्त्र मेंं सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर श्रीमती रत्नामा पदक से सम्मानित किया गया।
महिला शिक्षा के लिए ख्याति प्राप्त वनस्थली विद्यापीठ में विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी विभाग भारत सरकार के सचिव डॉ. टी. रामास्वामी एवं विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. दिवाकर शास्त्री ने 2 हजार 3 सौ 78 छात्राओं को विभिन्न उपाधियां एवं 82 छात्राओं को स्वर्ण पदक प्रदान किए। दीक्षांत समारोह में डॉ. स्वामी ने मानविकी संकाय की आठ, समाज विज्ञान संकाय की दो, ललित कला संकाय की दो, एम.एण्ड.एक्ट की एक विज्ञान संकाय की 9 गृह विज्ञान संकाय की दो, प्रबंधन संकाय की एक, शिक्षा संकाय की छ:, मानविकी संकाय की 28, समाज विज्ञान संकाय की 41, ललित कला संकाय की 11, एम.एण्ड. एक्ट की 152, मानविकी संकाय मास्टर ऑफ आर्टस की 33 व 31, ललित कला संकाय कह 47, एम.एण्ड.एक्ट की 101, विज्ञान संकाय की 310, मास्टर ऑफ कम्प्यूटर एप्लीकेशन की 278, मास्टर ऑफ साईंस की 81, मास्टर ऑफ एज्यूकेशन की 25, मास्टर ऑफ बिजनेश एडमिनिस्ट्रेशन की 303, बैचली ऑफ आर्टस की 215, विद्यापीठ की शास्त्री उपाधि की 8, बैचलर ऑफ साईंस की 230, बैचलर ऑफ साईंस गृहविज्ञान की 74, बैचलर ऑफ कम्प्यूटर एप्लीकेशन की 127, बैचलर ऑफ बिजनिस एड़मिनिस्ट्रेशन की 144, बैचलर ऑफ एज्यूकेशन की 98 तथा बैचलर ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन की 10 छात्राओं को विभिन्न उपाधियां तथा कीर्ति करनाणी सहित 82 छात्राओं को विद्यापीठ के विभिन्न स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया गया।
प्रेषक- दिनकर एवं रवि विजय वर्गीय'पीपलूÓ(टोंक)
फोटो कैप्शन ०१- निवाई के वनस्थली विद्यापीठ में ७४ वें वार्षिकोत्सव में संबोधित करते उ.प्र. के राज्यपाल बी.एल. जोशी। फोटो- रवि विजयवर्गीय
फोटो कैप्शन ०२- निवाई के वनस्थली विद्यापीठ की छात्राओं को उपाधियां व पदक देकर सम्मानित करते विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. दिवाकर शास्त्री। फोटो- रवि विजयवर्गीय
फोटो कैप्शन ०३- निवाई वनस्थली विद्यापीठ में सिर पर चरिया रखकर व उसमें आग जलाकर चिरमी नृत्य की प्रस्तुति देती छात्राए। फोटो- रवि विजयवर्गीय
फोटो कैप्शन ०४- श्रीमति रत्नाम्बा पदक से सम्मानित निवाई की कीर्ति करणानी अपना पदक दिखाती हुई।
फोटो- रवि विजयवर्गीय
फोटो कैप्शन ०५- निवाई के वनस्थली विद्यापीठ के वार्षिकोत्सव व दीक्षांत समारोह में उपस्थित छात्राओं को दीक्षांत भाषण देते विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के सचिव डॉ. टी. रामासामी। फोटो- रवि विजयवर्गीय
फोटो कैप्शन ०६- निवाई के वनस्थली विद्यापीठ के ७४ वें वार्षिकोत्सव में उपस्थित छात्राएं।
फोटो- रवि विजयवर्गीय

सेवामें,
श्रीमान सम्पादक महोदय,
तथ्यभारती
विषय : टोंक जिले के समाचार पिछले दिनों स्तम्भ में प्रकाशन के क्रम में।
महोदय,
उपरोक्त विषय में नम्र निवेदन है कि पिछले दिनों स्तम्भ के लिए क्षेत्र के सामाजिक, सांस्कृतिक, खेल एवं अन्य समारोह के आपके द्वारा मांगे जाने वाले कार्यक्रम के तहत निम्र समाचार आपको प्रेषित रहा हूं। पूर्व अंकों में भी कई समाचार प्रकाशित हुए है। अवगत होवे।
प्रेषक
दिनकर विजयवर्गीय
पीपलू, टोंक (राजस्थान)
मोबाइल नं. - 9462046880, 9414348397

पिछले दिनों
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निवाई, 16 जनवरी। विज्ञान एवं प्रोद्योगिक विभाग भारत सरकार के सचिव डा. टी रामासामी ने कहा कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत हित साधना के लिए नही है, बल्कि समाज कल्याण में भी योगदान करती हैं।
डा. रामासामी शनिवार को वनस्थली विद्यापीठ के 26 वे दीक्षांत समारोह में समाज एवं विश्वकल्याण में जारी शिक्षा की भूमिका विषय को लेकर दीक्षान्त भाषण दे रहें थे।
उन्होने कहा कि वनस्थली विद्यापीठ की शिक्षा इसका आदर्श उदाहरण है जो महिलाओं का समग्र विकास करती है। उन्होने मदर टरेसा ओर महात्मा गांधी के उदाहरण देते हुए कहा कि उनके व्यक्तित्व से सीखा जा सकता हैं, कि शिक्ष का विश्व कल्याण के लिए कैसे उपयोग किया जा सकता है। उन्होने मानव कल्याण, सत्य, सादगी ओर संवेदनशीलता पर बल दिया। डा. टी रामासामी ने कहा कि नारी शिक्षा समाजिक कल्याण के लिए आवश्यक है। विश्व कल्याण में महिलाये अहम भूमिका का निर्वाह कर सकती है, क्योंकि उनके पास नैसर्गिक प्रतिभा होती है जो लोगों को आपस में जोड़ती है। एक शिक्षिका के रुप में वह विद्यार्थियो में जागरुकता उत्पन्न करती है ओर जीवन मूल्यों से अवगत कराती है। उन्होने कहा कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं। घर एवं समाज दोनो की बेहतरी में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। घर में वे शिशु को शिक्षा प्रदान कर बाह्य परिस्थितियों के लिए तैयार करती है, नैतिक मूल्यों से परिचित कराती हैं। उन्होने कहा कि आतंकवाद संवेदन हीनता का परिणाम है, महिलाएं अगर शिक्षित न हो तो अपरिपक्व युवा मानसिकता उचित दिशा नही दे पाती। इसलिए आतंकवाद को रोकने में नारी शिक्षा सहायक होगी।
डा. टी. रामासामी ने अपने दीक्षान्त भाषण में विद्यापीठ की छात्राओं को संदेश दिया कि प्रकृति ने विश्व कल्याण के लिए महिलाओं को सर्वाधिक उपयुक्त तैयार किया है। हमारी शिक्षा प्रणाली को भी उत्थान कर दिशा में कार्य करना चाहिए। उन्होने कहा कि पश्चिम सभ्यता के मूल्यों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय मूल्य विश्व कल्याण के लिए आवश्यक हैं। प्रारम्भ में वनस्थली विद्यापीठ प्रो. डा. आदित्य शास्त्री ने कहा कि डा. टी. रामासामी के देश के मूर्धन्य वैज्ञानिक है। महिला विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी शिक्षा के विकास के लिए वे सदेव तत्पर रहते आये हैं। इसी का परिणाम है कि उन्होने बायो साइंस एण्ड बायो टेक्नोलोजी के विस्तार के लिए वनस्थली विद्यापीठ द्वारा भेजे गए क्यूरी का प्रोजेक्टर एक माह में ही स्वीकृत कर दिया। करीब 58 हजार वर्ग फिट क्षेत्र में बनने वाले स्कूल ऑफ लाईफ सांइस के लिए 5 करोड़ 25 लाख रुपए स्वीकृत हुए हैं। डा. टी. रामासामी ने आज ही अपने हाथो युक्त बनने वाले भवना का शिलान्यास किया। इस अवसर पर विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. दिवाकर शास्त्री ने विद्यापीठ द्वारा आयोजित विभिन्न परीक्षाओं में उत्र्तीण 2 हजार 379 छात्राओं को उपाधि वितरित की। इसके अतिरिक्त विभिन्न परीक्षाओं में मेरिट में आने वाली 82 छात्राओं को स्वर्ण पदक प्रदाना किए। इस अवसर पर विद्यापीठ के अध्यक्ष दिवाकर शास्त्री ने उपाधि प्राप्त छात्राओं को दीक्षा दी।
इससे पूर्व शनिवार की प्रात: डा. टी. रामासामी के वनस्थली पहुंचने पर विद्यापीठ के स्वागत द्वार पर उनकी नन्ही-नन्ही छात्राओं ने तिलक लगा सूत की माला पहनाकर परम्परा के अनुसार स्वागत किया। उन्होने शान्ताबाई शिक्षा कटीर का अवलांकन किया तथा लक्ष्मीबाई मैदान में वनस्थली सेवादल की छात्राओं की परेड़ का निरीक्षण कर मार्चपास्ट की सलामी ली। उन्होने घुडसवारी छात्राओं द्वारा वायुयान चालन देखा तथा ज्ञान मंदिर में संगीत नृत्य का आनन्द लिया।


टोंक, 17 जनवरी (नि.स.)। रविवार को वनस्थली विद्यापीठ के 74वें वार्षिकोत्सव के अवसर पर मुख्यअतिथि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनवारी लाल जोशी ने कहा कि हमारी व्यथा रही है कि हमने वर्षो तक स्त्री शिक्षा को संबल नहीं बनाया था और आज जब ध्यान दिया तो महिलाएं हर क्षेत्र में उभर कर आ रही है। महिलाओं को आज पंचमुखी शिक्षा दिलकर देश के भविष्य को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वनस्थली विद्यापीठ का बड़ा सम्मानीय इतिहास रहा है। पिछले 74 वर्षो में विद्यापीठ ने स्व. हीरालाल शास्त्री की परिकल्पना की बहुत ही सम्मानजनक यात्रा की है। उन्होंने कहा कि वह वनस्थली पहली बार आज से 55 वर्ष पूर्व तब आए थे, जब बाबू राजेन्द्र प्रसाद यहां आए थे। जोशी ने कहा कि वह शिक्षण संस्थाओं पर बहुत ध्यान देते है। उत्तरप्रदेश में शिक्षण संस्थाएं बहुत है लेकिन वनस्थली में आकर जो कार्य देखा, उससे आत्म संतुष्टि हुई है। राज्यपाल जोशी ने कहा कि वनस्थली विद्यापीठ एक मात्र ऐसी संस्था है देश में, जहां सर्वांगीय विकास विद्यार्थियों में ढाला जाता है। अन्य शिक्षण संस्थाओं में ऐसा नहीं देखा जाता है। उन्होंने कहा कि यहां उन छात्राओ को शिक्षा दी जाती है। उन्होंने कहा कि यहां उन छात्राओं को शिक्षा दी जाती है जो हमारे भविष्य को संवारेगी। उन्होंने कहा कि नारी के व्यक्तित्व का विकास होगा तो पूरा परिवार ही नही, समाज तथा देश का भी विकास होगा। उन्होंने वनस्थली की विकास यात्रा को देख कर काफी खुशी व्यक्त की। प्रारंभ में राज्यपाल जोशी ने कहा कि उनकी धर्मपत्नि श्रीमती संतोषी जोशी कभी भी सार्वजनिक समारोहो में उनके साथ मंच पर नहीं बैठी। लेकिन यह प्रथम अवसर है कि आज उनकी धमपत्नि पहली बार समारोह में मंच पर बैठी है तो छात्राओं ने तालियां बजाकर उनका करतत ध्वनि से स्वागत किया। इस अवसर पर राज्यपाल जोशी ने उनके साथ आई एक प्रोफेसर डा.ज्योति जोशी द्वारा लड़कियों के संबंध में बनाई गई एक कविता सुनाई तो पाण्डाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गंूज उठा। प्रारंभ में विद्यापीठ के कुलपति डा.आदित्य शास्त्री ने विद्यापीठ की पिछले एक वर्ष की गतिविधियों पर विस्तार से जानकारी देते हुए अब तक की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। राज्यपाल जोशी ने उक्त प्रतिवेदन का विमोचन किया। विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो.दिवाकर शास्त्री ने कहा कि उन्हे अपनी विद्यापीठ की सभी बेटियों पर बहुत गर्व है। यहां अध्ययनरत सभी छात्राएं उनकी बेटियां है और वह अपनी हर बेटी पर गर्व करते है एवं उन्हे पूर्ण शिक्षा से परिपूर्ण करने के लिए संकल्पित है। इससे पूर्व उत्तरप्रदेश के राज्यपाल बनवारी लाल शर्मा के वनस्थली पहुंचने पर विद्यापीठ के स्वागत द्वार पर बालिकाओं द्वारा स्वागत किया गया। वनस्थली विद्यापीठ के 74 वें वार्षिकोत्सव पर मुख्य अतिथि के रुप में विद्यापीठ की छात्राओं जब महामहिम को सूत की माला पहना एवं तिलक लगा गुड़ से मुंह मीठा करवाया तो वह इस पुराणिक स्वागत परम्परा की झजक पाकर गद गद हुए बिना नही रह पाएं। वीर बाला मैदाना में घुडसवारी प्रदर्शन में नन्ही बालिकाओं से राज्यपाल ने स्वयं जाकर पूछा कि क्या घुड़ सवारी करते डर नही लगता एवं तुम भी कभी गिरी नही। 8 वर्षीय एक बालिका ने जब उन्हे बताया कि उन्हे डर तो नही लगता लेकिन वह कभी कभार घुड सवारी करते हुए गिर चुकी हैं। वीर बाला मैदान में विद्यापीठ की छात्राकनिका राठौड़, जहां नगीना नामक घोडे पर तो मंजू, सुनयना, केटरिना ने घुड सवारी से हाईजम्प कर 8 विभिन्न्ज्ञ बाधाएं पार की एवं सुनयना व रामनन्दिनी ने 5 घोडों की अलग-अलग कमान सम्भाले संधे हाथों में घुडसवारी ने दांतो तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दिया। घुड दौड़ में रेखा चौधरी, मंजू, कनिका शर्मा एवं सुहानी ने बेहत्तर प्रदर्शन किया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातनाम रहेें विद्यापीठ के चिरमी नृत्य में चार-चार चरियें को सिर पर रखकर आग जलाकर 10 बालिकाओं के राजस्थानी नृत्य में जब बालिकाएं नंगे पांवों से तलवारों, गिलासों एवं थाली पर चढकर नृत्य किया तो महामहिम स्वयं तालियां बजाते हुए खडे हो गए। इस नृत्य की मार्ग दर्शिका डा. नीलम को धन्यवाद देते हुए राज्यपाल बी.एल. जोशी ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत कर रही कनिका शर्मा के बेहत्तर प्रदर्शन में तबले की थाप एवं घुंघरु की आवाज का तालमेल पर तालियां बजाई आडोटोरियम में ही वृन्द वादन व गायन में ठूमरी सुनकर गदगद हुए। उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल बनवरी लाल जोशी ने विद्यापीठ के आर्ट गैलेरी में डीन पुष्पा दुल्लर के नेतृत्व में छात्राओं द्वारा फैस्किों कार्य का अवलोकन किया। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने परेड़ मैदान में वनस्थली सेवा दल द्वारा प्रस्तुत परेड़ का निरीक्षण झण्डारोहण, परेड निरीक्षण एवं परेड़ सलामी भी ली।


बालिकाएं आगे बढ़कर उन्नति के शिखर को छुएंगी: राज्यपाल जोशी
उत्तरप्रदेश राज्यपाल ने वनस्थली के वार्षिकोत्सव में भाग लिया
टोंक, 17 जनवरी (नि.स.)। उत्तरप्रदेश के राज्यपाल महामहिम बी.एल.जोशी रविवार को वनस्थली विद्यापीठ के 74वें वार्षिकोत्सव में आकर भावविह्ल हो गए। उन्होंने कहा कि 55 वर्ष पूर्व की यादे ताजा हो गई, जब वे डा. राजेन्द्र प्रसाद के साथ प्रथम बार वनस्थली आए थे। जोशी वनस्थली विद्यापीठ के 74वें वार्षिकोत्सव पर मुख्यअतिथि पद से सम्बोधित कर रहे थे। उनके साथ उनकी पत्नि श्रीमती संतोष देवी भी थी। उन्होंने कहा कि वनस्थली आना उन्हे अच्छा लगा। यहां बालिकाओं को घुड़सवारी, कला, संगीत और ग्लाइडर उड़ाते देखना एक सुखद अनुभव रहा है। यह बालिकाएं आगे चलकर अवश्य देश का नाम रोशन करेगी। स्त्री शिक्षा में संस्थान के योगदान की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि स्त्री शिक्षा के सर्वागीय विकास का स्वरुप उन्हे यहां देखने को मिला है। आशा है यह बालिकाएं अपनी इस यात्रा में आगे बढ़ कर उन्नति के शिखर को छुएंगी। उन्होंने कहा कि उनकी कोई छोटी बेटी होती उसे यहीं पर शिक्षा दिलवाते। इस अवसर पर एक कविता भी भी सुनाई बेटियां पावन दुबाएं है, बेटियां ठण्डी हवाएं है। इससे पूर्व सुबह साढे 10 बजे राज्यपाल सपत्निक वनस्थली विद्यापीठ पहुंचे, जहां संस्था के अध्यक्ष दिवाकर शास्त्री व कुलपति आदित्य शास्त्री ने उनका स्वागत किया। सर्वप्रथम उन्होंने शांता बाई शिक्षा कुटीर का अवलोकन किया। यहां हीरालाल शास्त्री की पुत्री शांता बाई द्वारा बनाई मिट्टी की ईंटें व सामान देख कर राज्यपाल अभिभूत हो गए। उन्होंने लक्ष्मीबाई मैदान में मार्चपास्ट की सलामी ली। कला मन्दिर में कला दीर्घा का अवलोकन किया। वीर बाला मैदान में घुड़सवारी के करतब देखे। फ्लाइंग क्लब में बच्चियों का ग्लाइडर उड़ाना देखा और ज्ञान मन्दिर आडोटोरियम में गीत-संगीत व नृत्य देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने घुड़सवारी करने वाली छात्रााअें से बात चीत की और उनके साथ फोटो खिंचवाए। संस्था के कुलपति आदित्य शास्त्री ने महामहिम को सपंूर्ण गतिविधियों की जानकारी दी और प्रतिवेदन पढ़कर सुनाया। अन्त में संस्था के अध्यक्ष दिवाकर शास्त्री ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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उत्तरप्रदेश के राज्यपाल महामहिम बी.एल.जोशी रविवार को वनस्थली विद्यापीठ के 74वें वार्षिकोत्सव को सम्बोधित करते हुए।

-दिनकर विजयवर्गीय पीपलू (टोंक)